अक्सर लफ़्ज़ों को बहकते देखा है सच और झूठ के बीच झुलसते देखा है कभी खुशामद के लिबास में झुठ का सोदा करते तो कभी तीर से नुकीले बनकर बिना लहु बहाएं घायल करते देखा है पर ये आंखें कभी कुछ नहीं ...
अक्सर लफ़्ज़ों को बहकते देखा है सच और झूठ के बीच झुलसते देखा है कभी खुशामद के लिबास में झुठ का सोदा करते तो कभी तीर से नुकीले बनकर बिना लहु बहाएं घायल करते देखा है पर ये आंखें कभी कुछ नहीं ...