यूँ ही दूरियों में गुज़र गयी ज़िन्दगी, कभी वो जुदा, कभी में जुदा इन चाहतों के मोड़ पर , कभी वो रुकी, कभी में रुका वो ही रास्ते, वो ही मंजिले, न उसे खबर , न मुझे पता अपनी अपनी अहंकार की आग ...
यूँ ही दूरियों में गुज़र गयी ज़िन्दगी, कभी वो जुदा, कभी में जुदा इन चाहतों के मोड़ पर , कभी वो रुकी, कभी में रुका वो ही रास्ते, वो ही मंजिले, न उसे खबर , न मुझे पता अपनी अपनी अहंकार की आग ...