न तुम कोई हकीकत, नथे कोई स्वप्न। तब तुम क्या थे? मेरे मन की (एक) उलझन । जितना जाना, उतना उलझा। उलझ-उलझ कर फिर, कभी न सुलझा। सुलझ जाता तो, खत्म हो जाती उलझन। फिर भी मन तो, करता एक प्रश्न । जब तुम, तुम ...
न तुम कोई हकीकत, नथे कोई स्वप्न। तब तुम क्या थे? मेरे मन की (एक) उलझन । जितना जाना, उतना उलझा। उलझ-उलझ कर फिर, कभी न सुलझा। सुलझ जाता तो, खत्म हो जाती उलझन। फिर भी मन तो, करता एक प्रश्न । जब तुम, तुम ...